भले ही उत्तराखंड का 70 प्रतिशत से ज्यादा भूभाग वन संपदा में आता है, और ऐसे में उत्तराखंड का आम नागरिक इन जंगलों को लगातार बचाता भी आया है। पर जब हम बात करते हैं की दूर-दराज के गांव की तो उत्तराखंड का आम नागरिक अपने लिए इन्हीं जंगलों से थोड़ी सी लकड़ी भी नहीं काट सकता, आमतौर पर पहाड़ों के दूर दराज के गांव में भारी गैस के सिलेंडर ले जाना भी एक चुनौती से कम नहीं है। ऐसे में ग्रामीणों के लिए लकड़ी एक ऐसा माध्यम है जिससे वह अपने रोजमर्रा के ले भोजन पका सकते हैं। पर लंबे समय से वन विभाग ने ग्रामीणों से उनका यह हक भी छीन रखा है। वहीं इसको लेकर कई बार ग्रामीण प्रदर्शन भी करते हैं, लेकिन राहत मिलने का नाम नहीं लेता वहीं जल्द ही सरकार कुछ नियमों में संशोधन करने की तैयारी कर रही है।
उत्तराखंड में रोजगार परक उद्योगों को लगाने व निजी भूमि पर निर्माण कार्य आदि की दिक्कतों को देखते हुए सरकार यह संशोधन करने जा रही है।
अभी तक राज्य में उत्तर प्रदेश वृक्ष संरक्षण अधिनियम 1976 लागू है जिसमें कई पेड़ों को काटने की अनुमति नहीं है। राज्य में नीम, साल महुआ ,पीपल,गूलर, अर्जुन, इमली, जामुन, रिठा, तुन, खैर, शीशम आदि कई प्रजातियों के पेड़ों को काटने की अनुमति नहीं है।
अब सरकार कई पेड़ों की प्रजातियों को प्रतिबंधित श्रेणी से बाहर करने की तैयारी में है इसके लिए वन अधिनियम में संशोधन किया जाएगा।आम आदमी की दिक्कतों को महसूस करते हुए सरकार पेड़ों के प्रति जनता के लगाव को भी बढ़ाना चाहती है। ट्री प्रोटेक्शन एक्ट में बदलाव करने के लिए तीन वरिष्ठ अधिकारियों की समिति बना दी गई है। समिति 15 दिन में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी उस रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद रिपोर्ट को कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। कैबिनेट से पास होने के बाद यह विधानसभा के पटल पर रखी जाएगी। विधानसभा से पारित होने के बाद नए नियम राज्य में लागू हो जाएंगे।
अभी तक वन विभाग के ऑनलाइन पोर्टल के जरिए पेड़ काटने के लिए आवेदन किया जाता है।लेकिन इसमें भी तमाम अड़चनें होने की वजह से आपको वन विभाग के चक्कर लगाने पड़ते है। नए नियम लागू होने के बाद आप कुछ प्रजाति के वृक्ष अपनी निजी भूमि पर निर्माण आदि कार्य के लिए बिना वन विभाग की अनुमति के काट सकेंगे।