रिपोर्ट – निज़ामुद्दीन शेख़
काशीपुर में हर साल मां भगवती बाल सुंदरी देवी के मंदिर परिसर में आयोजित होने वाले ऐतिहासिक चैती मेले में लगने वाला नखासा बाजार अपने चरम पर है। साथ ही यह मेले के प्रमुख आकर्षण केंद्रों में से है। एक वक्त था जब इस मेले में चंबल के डाकू अपने पसंद का घोड़ा खरीदकर ले जाते थे। बताया जाता है कि चैती मेला में नखासा बाजार करीब 400 साल पहले रामपुर निवासी घोड़ों के बड़े व्यापारी हुसैन बख्श ने शुरू किया था।
इस बाजार में लाखों रुपये की कीमत तक के घोड़े बिक्री के लिए पंहुँचे हैं। इस बार हालांकि घोड़ा बाजार में घोड़ा व्यापारी और खरीददार कम आये हैं।
उत्तराखंड के जनपद उधम सिंह नगर के काशीपुर में चैती मेले में लगने वाला नखासा बाजार जोकि चैती मेले में सैकड़ों वर्षों से लगता आ रहा है। यह बाजार चैती मेले के उद्घाटन के दिन से शुरू होकर सातवें दिन मां बाल सुंदरी देवी का चैती मन्दिर में डोला आने तक लगता है। इस बाजार में घोड़ा व्यापारी पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के अलावा राजस्थान, गुजरात, पंजाब आदि से घोड़े बेचने आते हैं और यहां बिक्री करके अपने घोड़े की अच्छी कीमत वसूलकर जाते हैं। वहीं इस बार भी यह बाजार अपने पूरे शबाब पर है। खरीददार यहां घोडों को दौडाकर व उनके करतब देखकर सही तरीके से जांच परखकर घोडे खरीद रहे हैं। इस बार इस घोड़ा बाजार में सिन्धी, अरबी, मारवाडी तथा अवलक सहित, अमृतसरी, वल्होत्रा, नुखरा, अफगानी हर प्रजाति के घोडे आये हैं। यहां लुधियाना व पंजाब और राजस्थान से लाए घोडों की काफी डिमांड खरीददार करते हैं। काशीपुर के मां बाल सुंदरी देवी मंदिर में लगने वाले इस चैती मेले में हर साल लगने वाले नखासा बाजार का अनुमान इसी से ही लगाया जा सकता है कि अपने समय का मशहूर डाकू सुल्ताना डाकू भी अपने लिए इसी नखासा बाजार से घोडा खरीदकर ले जाता था। उस समय घोड़े 5 रूपए से लेकर 50 रूपए तक और अच्छे से अच्छा घोडा 100 रूपए और 150 रूपए में मिल जाता था। इस बाजार में 10-12 नस्ल के घोड़े बिकने आते हैं। मेले के नखाशा बाजार में उत्तराखंड, यूपी समेत कई प्रदेशों से लोग घोड़े खरीदने आते हैं। इस घोड़ा बाजार को 135 से 140 साल हो गए हैं। यह बाजार दादा हुसैन बख्स के द्वारा लगाया गया था। उनके बेटे का नाम मोहम्मद हुसैन तथा उनके बेटे का नाम अली बहादुर, अली बहादुर के बेटे का नाम जाफर अली और जाफर अली के बेटे शौकत भी खुद यहां आते हैं। पूर्व में यह घोड़ा बाजार पूरे भारत मे अपना महत्व रखता था। यहां पूरे भारत से व्यापारी और खरीददार आते थे। यहां तक कि मेरठ, बाबूगढ़ छावनी, रानीखेत छावनी और गौशाला तक से घोड़े खरीदने आते थे। वहीं इन बाजार में एक से एक अच्छी नस्ल के घोड़े आते थे। तब यहां उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, जम्मू कश्मीर, काठियावाड़ तथा राजस्थान से आते थे। आज स 45 साल पहले तक अधिकतर नस्लों के घोड़े बिक्री के लिए आते थे लेकिन अब चंद नसलें ही रह गयी हैं जिनमें सिंधी, पंजाबी और काठियावाडी शामिल हैं।
सुल्ताना डाकू के इतिहास के बारे में बताया जाता है कि उस जमाने में अधिकारियों के साथ-साथ डाकू भी थोड़े लगते थे और आम इंसान की जरूरत घोड़ों से ही पूरी होती थी, घोड़ों से ही आम आदमी इधर से उधर जाया करता था। उन्होंने बताया कि सुल्ताना डाकू का यही क्षेत्र था और यहीं से ही मिस्टर यंग नामक अंग्रेज अधिकारी ने उन्हें गिरफ्तार किया था तथा सुल्ताना डाकू कई साल तक इस मेले में आया और यहां से घोड़ा भी लेकर गया। सुल्ताना डाकू उस वक्त का बहुत ही प्रसिद्ध व्यक्ति था। अंग्रेजी हुकूमत पूरी तरह से उसके पीछे पड़ गई थी। ब्रिटेन से मिस्टर यंग नामक अंग्रेज अधिकारी को उसे गिरफ्तार करने के लिए विशेष तौर पर बुलाया गया था और सुपरीटेंडेंट कासम अली को सुल्ताना डाकू को गिरफ्तार करने के लिए उसके पीछे लगाया गया था। सुल्ताना डाकू का जन्म मेवानवादे में हुआ था और वह भाँतु बिरादरी से ताल्लुक रखता था। सुल्ताना डाकू की परवरिश पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के हरथले क्षेत्र में हुई थी। ऐसा माना जाता है कि अपने समय की मशहूर महिला डाकू फूलन देवी भी इन मेले में आती थी और इसने यहां पर मां बाल सुंदरी देवी को के मंदिर में प्रसाद भी चढ़ाया था तो यहां से थोड़ा भी खरीदा था।