प्रेस विज्ञप्ति खेल मंत्री के यहां से प्राप्त हुई है।
खेल व युवा कल्याण मंत्री रेखा आर्य ने स्पोर्ट्स स्टेडियम के निरीक्षण के बाद खेल व युवा कल्याण अधिकारियों के साथ स्पोर्ट्स स्टेडियम में समीक्षा बैठक की। बैठक में मन्त्री महोदय ने अधिकारियों को दो टूक कहते हुए कहा कि खेल विभाग खिलड़ियों के हितों को देखते व आज की परिस्थितियों के हिसाब से उनकी मूलभूत जरूरतें जिसमें ,डाइट , खेल सामग्री , शूज , ट्रेक सूट आदि हैं की व्यवस्था को सेंट्रलाइज बनाते हुए मानक बनाएं । वही उन्होंने निर्देश देते हुए कहा कि खेल दिवस 29 अगस्त के मौके पर 8 से 14 साल के खिलाड़ियों को स्कॉलरशिप देने की शुरुआत की व्यवस्था के साथ साथ बच्चों का चिन्हिकरण करें । ये फैसले खेल मंत्री ने लिए है
विज्ञप्ति समाप्त
मुद्दे की बात ये है, और सवाल भी कुछ यही खड़े होते हैं
उत्तराखंड की बात करते हैं तो उत्तराखंड की स्थिति आज हर क्षेत्र में खराब है, वहीं जब बात करते हैं खेल की तो अभी तक उत्तराखंड एक भी ऐसा खिलाड़ी नही दे पाया है जिसने उत्तराखंड में ही खेल की ABCD सीखी हो, और उसके बाद भारत में ही नही बल्कि दुनिया में उत्तराखंड का नाम रोशन किया हो। वहीं जब बात करते हैं उत्तराखंड के इकलौते स्पोर्ट्स कॉलेज की, जो की देहरादून के महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज के नाम से जाना जाता है वहां पर स्थिति इतनी दयनीय है कि सिर्फ कह भर देने से या सिर्फ लिखने से उसे बयां नहीं किया जा सकता।
महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज में कभी वो सुविधाएं भी मौजूद थी जो की पूरे उत्तर भारत में नही हुआ करती थी, फिर बात करें आइस स्केटिंग स्टेडियम, हॉकी टर्फ की ये महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज अभी भी हैं लेकिन किस हालत में हैं ये वहीं पर जा कर देखा जा सकता है हॉकी स्टेडियम तो मर चुका है मशीनें जो कभी आइस बनाने के काम आती थी वह शायद अब कबाड़ में भी ना जा पाए इनडोर स्टेडियम पूरी तरह से खत्म हो चुका है स्थिति यह है कि शायद जानवर भी अब उसके अंदर रहना पसंद ना करें तो हॉकी टर्फ भी धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है जबकि जो भी थोड़ा सा हॉकी को समझते हैं वह जानते हैं कि ओके डर की अहमियत क्या होती है भारत क्यों आज इंटरनेशनल लेवल पर पिछड़ रहा है हॉकी में क्योंकि भारत के पास ओके टफी मौजूद नहीं है। वहीं उत्तराखंड के पास तो इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम भी है जो की कभी उत्तराखंड के सान हुआ करता था, लेकिन आज वो अपने आप को बचाने की गुहार लगाते हुए तड़प रहा है, और चंद सांसे ही शायद उनकी किस्मत में बची हैं। तो दूसरी तरफ उत्तराखंड में एक खेल के अंदर की राजनीति एक खूबसूरत और अंतरराष्ट्रीय स्तर के क्रिकेट स्टेडियम को भी निकल चुका है जिस ग्राउंड में कभी हजारों लोगों ने बैठकर इंटरनेशनल मैच देखा हो जहां की पिक्चर बाउंस के साथ तन भी करती थी आज सब कुछ खो चुकी है।
अब बात करते हैं खेल मंत्रियों की, पूर्व के खेल मंत्री की बात करें तो वो पांच साल सिर्फ दावे करते रहे, और अब जो खेल मंत्री आई है वो भी वायदे करने लगी है, बस देखना होगा की क्या खेल की राजनीति उनकी राजनीति से मेल खाती है की नही।
वैसे भी भी उत्तराखंड में राजनीति आज सबकुछ निगल रही है।